Śrīkoṣa
Chapter 33

Verse 33.105

मन्त्रमूर्तेऽथ स्वपदं समासादय तद्‌द्वयम्।
क्षमस्वेति द्विरुच्चार्य तारस्तारा नमो नमः ॥ 112 ॥