Śrīkoṣa
Chapter 50

Verse 50.110

देवेन हरिणा जुष्टा सदा देवैश्च सेविता।
देवाश्च मामुपाश्रित्य विषयान् प्रत्यवस्थिताः(प्रत्यवस्थितान् A. B.) ॥ 127 ॥