Śrīkoṣa
Chapter 17

Verse 17.106

अर्चनीया नरैः शश्वन्मम मन्त्रमयी तनुः।
प्रविश्य विधिवद्दीक्षां गुरोर्लब्ध्वार्थसंपदः(संपदम् E. I.)।
मन्मयैरर्चयेन्मन्त्रैर्मामिकां मान्त्रिकीं(मम मन्त्रमयीं E. I.) तनुम् ॥ 107 ॥