Śrīkoṣa
Chapter 18

Verse 18.27

द्रव्यशुद्ध्यै क्षेत्रशुद्ध्यै मत्सांनिध्याय वै गुरुः।
नियमेन प्रतिष्ठां वै कर्तव्यां तां ब्रवीमि ते।। 18.27 ।।