Śrīkoṣa
Chapter 33

Verse 33.60

अभ्यर्च्य धूपदीपान्तं कुम्भाद्विहगसत्तमम्।
ध्यायेत्पटस्थे विहगे प्रविष्टं ब्रह्मरन्ध्रतः।। 33.60 ।।