Śrīkoṣa
Chapter 53

Verse 53.102

मुद्रैषा कामधेन्वाख्या सर्वशुद्धिकरी सदा।
हस्ताभ्यामञ्जलिं बध्वा त्वीषद्विकसितां स्फुटाम्।। 53.102 ।।