Śrīkoṣa
Chapter 8

Verse 8.75

पुर्णाहुतिस्तु दातव्या नित्यमच्छिन्नधारया।
अरत्निमात्रमिध्माख्यं समित्पूगं घृताप्लुतम्॥ 8.75 ॥