Śrīkoṣa
Chapter 10

Verse 10.32

उपस्तीर्य शुभे पात्रे क्षिप्तं प्रत्यभिघार्य च।
अभिघार्य क्षतं चाद्यं भागं देवाय कल्पयेत्॥ 10.33 ॥