Śrīkoṣa
Chapter 1

Verse 1.47

सर्वपापविनिर्मुक्तः स याति परमां गतिम् ।
राष्ट्रवृद्धिकरं पुण्यमायुरारोग्यवर्धनम् ॥ १।४७ ॥